यंत्र की तरह कुछ ऐसे
किलषट मन्त्रो भी होते है जिसके केवल दशन से व्यक्ति अभीष्ट मनोरथ को प्राप्त कर लेता
है। श्रीयंत्र, गायत्री मंत्र अर सर्वंकष, भैरव यंत्र ऐसे ही मंत्रों की श्रेणी में
आते है। इसके दर्शन मात्र शुभ फल देने वाले कहे गए है। चमत्कारी विधाओं में मंत्र का
स्थान सर्वोपरि है। मंत्र और यंत्र इसके तत्व मानें जाते हैं। मंत्र सब सिद्धियों का
दुार है एवं देवताओं का आवास ग्रह है। मंत्र-यंत्र का रचनात्मक शरीर है जिस में अनुषठेय
कर्मकाण्ड की सारी प्रक्रिया सी प्रकार से छुपी होती है, जिस प्रकार से नकशे में भवन
तथा बीज में वक्ष छिपा रहता है। शास्त्रियों ने एस बात पर जोर दिया है कि शरीर अौर
आत्मा में कोई भी भेद नहीं होता। यंत्र की पूजा किये बिना देवता खुश नहीं होते। कई-
कई मंत्र ऐसे भी होते हैं जिसमें अंक सिद्धि होती है, जो बिना मंत्रों के कार्य करते
हैं व उनका परिणाम आश्चर्यचकित होता है। ऐसे ही मंत्रो में बीसा और पंचदशी का नाम सर्वोपरि
लिया जा सकता है। संक्षेप में,यही कहा जा सकता है कि मंत्र औऱ यंत्र दोनों ही उन्नत
शक्तियों का भंडार होता है।
मंत्र 3 प्रकार के होते
है- स्त्रीलिंग, पुल्लिंग
तथा नपुंसक। स्वाहानता वाला मंत्र स्त्री लिंग हैं नमः अंत वाले नपुंसक,
हुं फट् वाले पुलिंग जाति के हैं। वशीकरण शान्तिकरण में पुलिंग जाति के हैं। वशीकरण
शान्तिकरण में पुलिंग, शूद्र क्रियाओं में स्त्री जाति तथा अनय में नपुंसक जाति में
मन्त्रो का प्रयोग सिदु करें। वशीकरण मन्त्रो के प्रयोग और सिदु करने के औऱ जानकारी
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